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जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

भक्त हरिनाथ विरचित सरस्वती माता की आरती

मगही के आदिकवि भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त संत शिरोमणि हरिनाथ पाठक द्वारा रचित श्रीसरस्वती देवी की आरती    ।। राग गौरी ।। ताल ३।। पद ठुमरी ।। आरति साजि सरस्वतिजीको,                    सकल मनोरथ लीजेहीको।। ब्रह्म विचार सार परमासित,         आदि जगत व्यापिनि शक्ति को।।१।। वीणा पुस्तकधर भयटारिणि,            जड़तानाशिनि मातु सती को।।२।। हस्तेस्फाटि कस्त्रज कमलासनि,     दायिनि निज जन विमल मती को।।३।। जन हरिनाथ विषय सब तजि भज,        मति अंधिआरि हरणि जननी को।।४।।२०।।                                  -*श्रीललितभागवत* से प्रस्तुति -धर्मेन्द कुमार पाठक

जइहें रे बदरा जइहें (मगही गीत) -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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जइहें रे बदरा जइहें चाइना बॉर्डरवा जइहें.  जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें. जइहें तू गलवन घाटी, जइहें तू पंचोंग झील  जइहें बरसते रहीहें बरसते सइयां से कहिहें  तू हमर देशवा के शान ,तू हमर देशवा के प्राण  जइहें रे बदरा जइहें चाइना बॉर्डरवा जइहें  जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें जइहें बरसते रहीहें बरसते सइयां से कहिहें  बॉर्डरवा पर डटले रहिह, दुश्मन के मार के तू अइह जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें जइहें बरसते रहीहें बरसते सइयां से कहिहें    तिरंगवा के लाज रखिह, सेनुरा के ताज़ रखिह   जइहें रे बदरा जइहें चाइना बॉर्डरवा जइहें  जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें एक पर लाख के चढ़इह, दुश्मन के मार के तू अइह  जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें  जइहें बरसते रहीहें बरसते सइयां से कहिहें  जइहें रे बदरा जइहें चाइना बॉर्डरवा जइहें  जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें सइयां बिन सजनी के जियरा उदास  सइयां बिन सजनी के उड़ल सुहाग  जइहें रे बदरा जइहें सइयां के सनेसा लइहें...

जेठ की जवानी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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वैैशाख को मिल गयी जेठ की जवानी।       और धरती चिल्ला रही है -"पानी! पानी!!"             आज गाय-भैंस के फेफड़े फूल रहे,                  बछड़े-बछड़ियों के नथूने झूल रहे,                         मृग-मृगा मरीचिका में भूल रहे;                               तड़फड़ा रही जंगल की रानी॥          रेत में धँस गये ऊँटों के पाँव,              फ़सलों के जलने से सूना हुआ गाँव,                          श्रृंगालों के सारे उलटे हुए दाँव;                          छप्पर जले बची बस घर की निशानी॥  ऊपर से सूर्यदेव दाग रहे गोले,       पवन के हाथों में हैं आग के शोले,...

वक्त दरिया है, बहा जा रहा है... -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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    दिल से दूरियाँ तो वह रोज बढ़ा रहा है.  केवल दिखाने को ही प्यार जता रहा है.   पेड़   के सूखने का ही इंतज़ार नहीं तो, पंछी  यहाँ से उड़ने का मन बना रहा है. अब यह किस्मत है या वक्त का तकाज़ा जो, आज  वहाँ   हमको   भी   कोई  बुला  रहा  है. अब विश्वास  हो या न हो यह सच्चाई  तुझे,  कि  ज़िंदगी  का  सूरज  तो  ढ़ला  जा रहा  है. आओ कुछ पल पास बैठें और  बात करें,  नहीं तो   वक्त  दरिया है, बहा जा रहा है.

नियामक -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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नभ के  नीले आस्तरण पर सूर्य का सम्मोहन! धरा अनायास उसीके परितः अनवरत करती दिन-रात नर्त्तन! जड़-चेतन सबके सब बँधे हुए-से सोते-जागते अणु-परमाणु सूक्ष्म-जीवाणु सबका संलयन! फिर भी, कोई विस्फोट नहीं. अपितु प्रकृति का चिर-मिलन! जीवन मात्र संयोग नहीं, भोग और उपभोग नहीं, निश्चय  ही  इसका  कोई नियामक करता है निर्धारण! गढ़ता है आवरण.

बरसात -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

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                   बरसात             रात प्रात हो गई ! वाह! क्या बात हो गई !! जीवन से आज मौत की अब मात हो गई ॥ भ्रमर गूंज रहे कुसुमों के उन्नत वृन्त पर, मुग्ध तितलियाँ भी तो उनके साथ हो गईं॥ कलरव करते उतर आये पक्षियों के वृन्द, पुनः मिलने की तब उनसे बात हो गई ॥ अनमने मदिर ऊँघते गगन में ये बादल, पर्वतों से फिर उनकी मुलाकात हो गई ॥ आज अचानक मौसम ने ली है अँगड़ाई, जंगल की आग अब  यहाँ शांत हो गई ॥ आज वन-उपवन का मन बाग-बाग हो गया, प्यासी धरा पर  झमाझम  बरसात हो गई ॥                                 -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

रिश्ता -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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                                                                            आँखों से  मिलीं  आखें, आँखों  ने रचा रिश्ता.  रिश्तों  से  मिला रिश्ता,  रिश्तों  जुड़ा  रिश्ता. फिरतो जहाँ  भी गये  हम वहीं से जुड़ा रिश्ता, दौरे  ज़िदगी  में अब  तो  हर रोज़ जुड़ा रिश्ता. रिश्तों  की  नाज़ुक  डोर तुम तोड़ना ना प्यारे, टूटा   एक  बार  तो  कभी जुड़ता  नहीं  रिश्ता. रिश्तों  से बना  रिश्ता,  रिश्तों  से लुटा रिश्ता, ज़िदगी   की   दौड़   में  हर  मोड़  लुटा  रिश्ता. इस   ठौर लुटा  रिश्ता,  उस  ठौर  लुटा  रिश्ता, रिश्तों  के  भँवर-जाल  में  हर ओर लुटा रिश्ता. अनजान ज़िंदगी ...

पिता

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बारिश,  धूप  और हवा में भीगता है,  तपता है,  सूखता है क्योंकि  वह पिता है। बुढ़ाते बरगद की छाँव है, खुशिंयों का पूरा गांव है।  वह स्नेह है, वात्सल्य है,  प्यार है,  दुलार है, डांट है, फटकार है, अनुशासन है, नियम है और  अथाह  प्रेम का संयम है। हमारी  उलूलजुलूल हरकतों पर  एक जोरदार  तमाचा है; व्यक्तित्व का  तपा-तपाया  साँचा है  पिता।   वह   पूरा का पूरा संसार है, पर-ब्रह्म-परमेश्वर का  विस्तार है।    वह  जीवन को  सिंचता है वह  हर-पल  खुशियों का समंदर लिए  चलता है वह साथ होता है  तो जैसे  कोई मुश्किल नहीं होती उसके  आशीष की दुनिया  कभी सिमटी नहीं होती वह  आनंद का  अनंत आकाश  है वह  है तो  हर क्षण खास  है उसके रहने पर  कभी गम का एहसास नहीं होता। उसके साथ में  कभी मन  उदास नहीं होता। वह होता है तो  लगता है  पूरी दुनिया  मेरी है।  वह होता है तो  ख्वाबो...

प्यार में डूबा जाये -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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चलो प्यार में अब डूबा जाये !  दरिया में उमंग की कूदा जाये ! सांसें हमारी आखिर क्यों हैं थमीं, चलकर अपने प्रभु से पूछा जाये! मेरे हाथ में तेरा हाथ है तो, साथ होने का मज़ा लूटा जाये! देखें इश्क़ आग है या पानी, खुद तैरकर धार में बूझा जाये! दिल है किसका समंदर देखते हैं, बस एक बार फिर से रूठा जाये! विरह की आग में कितनी है ज्वाला , स्वयं को जलाकर अब  देखा जाये!

भजन शतकस्य कवे: कृष्ण-भक्ति: -स्व.डॉ. सुरेश पाठक:

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स्व. आचार्य कृष्ण देव पाठक: 'भजन' शब्द: 'भज' सेवायाम् धातुना निर्मितमस्ति। भगवत: सेवा काव्य-माध्यमेन क्रियते तत् भजनम् कथ्यते। पुस्तकस्य नाम भजन शतकमस्ति। भजन शतमधिकमेव रचना: संति अस्मिन पुस्तके। पुस्तकस्य रचयिता पं. कृष्णदेव पाठकोSस्ति। रचना गणेश वंदनया प्रारभ्यते। यत: सृजनकार्य: निर्विघ्नेन भवेत् अतः गणेश  वंदना क्रियते। तत: गुरु-वंदना अस्ति। गुरो: कृपां विना कोSपि विद्वान् न भवति। अतः कविना गुरो: स्मरणं वंदनं च कृतम्। कवे: गुरु: पं. देवदत्त मिश्ररासीत्। अयं महानुभाव: गया नगरे व्रजभूषण संस्कृत महाविद्यालयस्य प्राचार्य: आसीत्। स: महान् वैयाकरण षट् शास्त्रवेत्ता चासीत्।स: तमध्यापितवान। तत: पुस्तके सरस्वती-वंदना कृता। अनन्तरे कृष्णकथा वर्णिता। इयम् कथा ब्रह्मवैवर्त, देवीभागवत,गर्ग संहिता, मत्स्य पुराण, महाभारत खिल भागे आदिषु ग्रंथेषु वर्तते। पर ब्रह्म परमात्मा निराकार: साकारश्चास्ति। सर्व प्रथम: स: एकाकी अस्ति। स: इच्छति -'एकोSहम् बहुस्याम्'। कन्या इच्छया तस्य वाम भागेन एका नारी: नि:सृता भवति। सा राधा अस्ति या लीलायाम् सहभागिनी: भवति। इयं भगवत: कृष्णस्य शक्तिरस्त...

इंजोरिया में चांद (मगही कविता) -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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इंजोरिया में चांद इतरा रहल हे. चंदनिया घूघवा सरका रहल हे. चित चकोर के चंदा चुरा रहल हे, बगिया में चंदनिया नहा रहल हे. धरती अपन रूप के सजा रहल हे, ओकर घूघवा बदरा उठा रहल हे. मन में घुंघरू कोई बजा रहल हे, सुरवा गीतिया के सजा रहल हे. चंदनिया मन ही मन सकुचा रहल हे, चांद तक-तक के मुख मुसका रहृल हे. बदरिया चंदवा के छिपा रहल हे, चंदनिया के मन ललचा रहल हे.

प्यार -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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  तुम से कुछ लेना न मेरा काम है. प्यार तो सब कुछ देने का नाम है. मैं किस हाल में हूं कह नहीं सकता, मेरी हर सांस पर तेरा ही नाम है. तेरे सामने जो कह नहीं सकता, कह रहे ये गीत, गजलें तमाम हैं. कोई लाख कहे कि हैं गीत मेरे, ये गीत सारे तेरे ही नाम हैं. प्यार में किस्मत का क्या रोना, प्यार किस्मत का दूसरा नाम है. प्रेम में है प्रभु दौड़े चले आते, मेरे प्यार का यह क्या अंजाम है. तुम पास होकर भी अब दूर क्यों हो, बता, तेरे दिल का क्या पैगाम है. छिपाने से कभी छिपता नहीं प्यार, सदियों से यह तो चर्चा-ए-आम है.

भक्त हरिनाथ के भजन (भाग 2)

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हिंदी-संस्कृत-मागधी के अंतरराष्ट्रीय ख्याति लब्ध साहित्यकार आचार्य दु:खहरण गिरि शास्त्री , अध्यक्ष जिला हिंदी साहित्य-सम्मेलन, जहानाबाद द्वारा प्रणीत 'जहानाबाद के साहित्य-सेवी' प्रकाशन वर्ष 1998 पृष्ठ संख्या 11 पर  भक्त कवि हरिनाथ पाठक के संदर्भ में अत्यंत ही सारगर्भित टिप्पणी है:- " शब्दों के साधक आराधक चिति के शोधक चिति के साधक ललित भागवत और ललित रामायण है जिनके सांस्कृतिक धरोहर महाकाव्य, जो सरस प्रीतिकर शब्द शिल्प छन्दों  से सज्जित जीवन के चिंतन से सुरभित  रचनात्मक सारस्वत यात्रा है जिनकी चर्चित सुधीजन में वाणी की वन्दना निरत जो गैहिक सुख से रहे विरत वृन्दावन वासी सहज उदासी शान्ति साधना का अप्रतिम आलोकपुंज वह मगध मही का।" प्रोफेसर डॉक्टर रामनिरंजन परिमलेन्दु पंडित हरिनाथ पाठक को याद करते हुए अपने निबंध 'अविभाजित गया जनपद के प्राचीन हिंदी साहित्यकार', अंतः सलिला, प्रकाशक, गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रधान संपादक डॉ रामकृष्ण, अप्रील 2007, पृष्ठ संख्या 36-37 पर लिखते हैं -' पंडित हरिनाथ पाठक (मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत 1900, सन 1843 ई...

संत हरिनाथ के भजन

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महाकवि हरिनाथ पाठक मगही के आदिकवि हैं। हिन्दी - संस्कृत-  मागधी के सुप्रसिद्ध कवि आचार्य श्री जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा सम्पादित 'बेला' में इस संदर्भ में क्रमशः कई निबंध प्रकाशित हुए थे।आचार्य श्री की यह स्पष्ट  मान्यता थी । 'कल्याण' वर्ष ५७ ,१९८३ ,दिसम्बर के अंक में स्व. डॉ. सुरेश पाठक द्वारा लिखित इनका परिचय प्रकाशित है। 'कल्याण' का विशेषांक 'संकीर्तनांक' वर्ष ६०, जनवरी १९८६, पृ. ३३४ पर प्रकाशित 'भक्त हरिनाथ का संकीर्तन - प्रेम' निबंध भी इनके सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराता है। सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता स्व. डॉ. कालिकिंकर दत्त द्वारा सम्पादित 'दि कंप्रिहेंसिव हिस्ट्री ऑफ़ बिहार' ज़िल्द २, भाग २, में इनका नाम आया है। राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना से प्रकाशित 'पंचदश लोकभाषा निबंधावली' में श्री कृष्णदेव प्रसाद ने भी इनका नाम लिया है। डॉ. नगेंद्र द्वारा सम्पादित 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में इनकी बखूबी चर्चा है। इसमें 'श्री ललित रामायण' का एक गीत 'मुरुगवा बोले विपिन में भोरे' को उद्धृत किया गया है। डॉ. ...

पाद स्पर्शं क्षमस्व मे (प्रपितामह स्व. भागवत पाठक को याद करते हुए) -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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आज जब पुरानी चित्रावली के पन्ने पलट रहा था तो अचानक  उनका चित्र पाकर भाव-विभोर हो गया। अंतस्थल में पुरानी स्मृतियों के चित्र उभर आये। पता नहीं ऐसा क्या था उनके पांव में कि हम लोग उससे चिपके रहते । बाबा हमें प्यार से कुछ किस्से सुनाते। कभी भक्त ध्रुव के बारे में तो कभी भक्त प्रह्लाद के बारे में। जब घर में भोजन बनता तो हम उन्हें बुलाने जाते। तब तक वे स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ कर तैयार हो रहे होते। मां कहती- "जा, बाबा को बुला ला"। तो हम दौड़ते, गिरते-पड़ते भागकर उनके पास पहुंच जाते । वे हमें देखते ही सब समझ जाते। जैसे इन सब का उन्हें पूर्वाभास हो। उन्हें पता होता कि क्या बात है। जब मेरी नजर उनके ललाट पर पड़ती तो उस पर श्वेत चंदन लगा होता। बदन पर झक सफेद-धोती और बगल बंदी कुर्ता में वे कोई देवदूत-से लगते । उनके कंधे पर अंगोछा और सिर पर पगड़ी भी होती। घर आते तो उनका आसन लगा होता सब कुछ बिल्कुल स्वच्छ। वे प्रायः अकेले ही भोजन करते। कभी-कभी हम लोग बाल हठ के कारण उनके साथ भोजन करने की जिद्द करते। कभी हमें वे खिलाते भी परंतु अक्सर वे पवित्रता का पालन करते। खानपान में बिल्कुल स्वच्...

संस्कृत में कैरियर -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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संस्कृत का संबंध हमारी संस्कृति से है। अब यह मात्र परंपरागत विषय नहीं अपितु आजीविका का साधन भी है। आज अनेक लोग इसका अध्ययन कर रोजगार के विविध क्षेत्रों से जुड़े हैं। विदेशों में भी संस्कृत के विद्वानों की मांग है। जिन्हें अपनी संस्कृति और संस्कार की समझ है वैसे विद्वान अप्रवासी भारतीय लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। इसके लिए अंग्रेजी जैसी संपर्क भाषा का ज्ञान उनकी अहमियत को बढ़ा देता है। प्रस्तुत है संस्कृत में उपलब्ध रोजगार पर एक दृष्टि: शैक्षणिक क्षेत्र माध्यमिक विद्यालय में संस्कृत शिक्षक बनने के लिए शिक्षा शास्त्री की डिग्री आवश्यक है। संस्कृत के साथ बीए और बीएड की डिग्री संस्कृत शिक्षक बनने का मार्ग प्रशस्त करती है। शास्त्री उत्तीर्ण होने पर सेना में धार्मिक शिक्षक के रूप में जूनियर कमीशन ऑफिसर रैंक पर नियुक्ति हो सकती है। संस्कृत में एमए, एमफिल, आचार्य और पीएचडी के साथ नेट परीक्षा उत्तीर्ण होने पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत विभाग में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति हो सकती है। इसके अतिरिक्त संस्कृत में मास्टर डिग्री होने पर यूजीसी और अन्य विश्वविद्यालयों में शोध सहायक के ...

होम्योपैथ : चिकित्सा में तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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होम्योपैथ बड़ी तेजी से लोकप्रिय हो रही चिकित्सा पद्धति है। वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।एक सर्वेक्षण के अनुसार इसकी लोकप्रियता 30% की दर से प्रति वर्ष आगे बढ़ रही है। इसकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण सस्ती दवाएं और इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट ना होना है। इसका भविष्य संभावनाओं से भरा है। आज सुदूर गांव से लेकर मेट्रोपॉलिटन शहर तक में लोग होम्योपैथ डॉक्टर को पसंद कर रहे हैं।  होम्योपैथ मनुष्य के रोग निरोधक क्षमता को मजबूत करने पर बल देता है। आज संपूर्ण विश्व में इसकी व्यापक स्वीकार्यता है। इसके प्रमुख और प्रसिद्ध दवा कंपनियों का जर्मनी और अमेरिका में स्थित होना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। वर्तमान परिदृश्य एक  ताजा सर्वेक्षण  के अनुसार, भारत में होम्योपैथी का बाजार 5000 करोड़  रुपए के लगभग  है। अगले 2  वर्षों में इसमें दोगुने से भी अधिक वृद्धि होने की संभावना है। फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में वृद्धि लगभग 20 प्रतिशत ही प्रतिवर्ष देखी जा रही है, जबकि होम्योपैथिक दवाओं का बाजार 25 से 30% की गति से लगातार प्रतिवर्ष वृद्धि की ओर अग्...

गजल-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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कैसा अज़ीब सियासी दौर है।  महलों में मसीहों का ठौर है।। जुबां पर लहराते  हैं  जो लब्ज़ , ज़िगर में बात यहाँ कुछ और है।।  यारों उनके वादों पर मत जा, बबूल में आम का-सा बौर है।। बेआबरू करके यह सपनों को, रखे आया माथे पर मौर है।। कहीं आदमीयत ना मर जाए, सबकुछ ही कयामत का कौर है।।  

नापते हैं आकाश की ऊंचाई को एयरोस्पेस इंजीनियर-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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आकाश का नीला रंग मन को लुभाता है। जी चाहता है, पंछियों की तरह उड़कर उसकी ऊंचाई को छू लूं! ऐसे ही अनंत आकाश में खुशियों के रंग भर देते हैं - एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस इंजीनियर। आज के भावी इंजीनियरों की इसमें गहरी अभिरुचि है। नीले आकाश में उड़ने का रोमांच इन्हें बरबस अपनी ओर खींच लेता है। औद्योगिक क्षेत्र में मिलिट्री और सिविल के परस्पर सामंजस्य से यह क्षेत्र अब और भी आकर्षक बन गया है। आज टीसीएस, सत्यम, इंफोसिस और केड्स जैसी मशहूर कंपनियां इसके डिजाइन निर्माण में कदम रख चुकी हैं। इसके पूर्व इस क्षेत्र में रिसर्च का सारा कार्य सरकार ही संभालती थी। यह कार्य डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट के माध्यम से होता था। उदार आर्थिक नीति के फलस्वरूप अब प्रमुख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां इसमें काफी अभिरुचि ले रहीं हैं। भारत में जीई, बोइंग और श्लंबर्जर के रिसर्च सेंटर खुल चुके हैं। इनमें शोध के लिए एमटेक/पीएचडी के कोर्स भी कराए जाते हैं। इनसे प्रशिक्षित नए प्रोफेशनल्स आकाश के सूनेपन में रंग भरने को बेताब हैं। क्या है एयरोस्पेस इंजीनियरिंग  सैटेलाइट, लांच वेहिकल, स्पेस सिस्टम और मिसाइल की सू...

एक गीत(पूज्य पिताश्री को समर्पित)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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आप तो यूं ही मुस्कुराते चले गए। हम बेरहम वक्त के हाथों छले गए!        तन्हाई का चल रहा एक नया दौर,       टीस रहे स्वप्न जो थे कभी ढले गए। पूज्य पिताश्री डॉ. सुरेश पाठक   जीवन की नैया, तेरे प्यार की छैंया, क्यों कर छिन मुझसे वक्त के पहले गए।        आखिर आज यह नभ क्यों है इतना लाल,         ज्यों गाल पर गगन के गुलाल मले गए! आज तो यह हवा भी चुपचाप बह रही, लगता है उसके ख्वाब कहीं तले गए!

What to do after 10 + 2 (12th के बाद क्या करें ) -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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अभी - अभी नेहा ने 12th का एक्जाम पास किया है। उसने   जब अपने अंकल को इसकी   सूचना दी   तो अंकल ने तपाक से पूछ डाला कि अच्छा बताओ कि अब आगे तुम्हारा क्या करने का इरादा है ! नेहा को चूँकि 12th  साइंस मैथमेटिक्स स्ट्रीम में अच्छे अंक आए थे। अतः    उसने बेहिचक कहा कि उसका   आगे इंजीनियर बनने का इरादा है। लेकिन बहुत से विद्यार्थी अपने आगे की कैरियर की प्लानिंग पहले नहीं कर पाते। वे अपने परीक्षा फल का इंतजार करते रहते   हैं। उसके बाद प्राप्त अंक के अनुसार निर्णय लेते हैं। लेकिन जिनका आत्मविश्वास दृढ़   होता है वे अपने कैरियर की   प्लानिंग पहले ही कर लेते हैं। आइए पता करते हैं कि 12th  के बाद कौन - कौन से कोर्सेज और कैरियर विकल्प हमारे पास मौजूद हैं। 10th के बाद 11th में Stream  चयन के साथ ही छात्र अपने कैरियर की आधारशिला रख देता है। वह साइंस , आर्ट्स या कॉमर्स में से किसी एक का चयन क...

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