जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

इंजोरिया में चांद (मगही कविता) -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

इंजोरिया में चांद इतरा रहल हे.
चंदनिया घूघवा सरका रहल हे.

चित चकोर के चंदा चुरा रहल हे,
बगिया में चंदनिया नहा रहल हे.

धरती अपन रूप के सजा रहल हे,
ओकर घूघवा बदरा उठा रहल हे.

मन में घुंघरू कोई बजा रहल हे,
सुरवा गीतिया के सजा रहल हे.

चंदनिया मन ही मन सकुचा रहल हे,
चांद तक-तक के मुख मुसका रहृल हे.

बदरिया चंदवा के छिपा रहल हे,
चंदनिया के मन ललचा रहल हे.


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