जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

नियामक -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

नभ के 
नीले आस्तरण पर
सूर्य का
सम्मोहन!
धरा
अनायास
उसीके परितः
अनवरत
करती
दिन-रात नर्त्तन!
जड़-चेतन
सबके सब
बँधे हुए-से
सोते-जागते
अणु-परमाणु
सूक्ष्म-जीवाणु
सबका
संलयन!
फिर भी,
कोई विस्फोट नहीं.
अपितु
प्रकृति का चिर-मिलन!
जीवन
मात्र संयोग नहीं,
भोग और उपभोग नहीं,
निश्चय 
ही 
इसका 
कोई नियामक
करता है
निर्धारण!
गढ़ता है
आवरण.

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