आँखों से मिलीं आखें, आँखों ने रचा रिश्ता.
रिश्तों से मिला रिश्ता, रिश्तों जुड़ा रिश्ता.
फिरतो जहाँ भी गये हम वहीं से जुड़ा रिश्ता,
दौरे ज़िदगी में अब तो हर रोज़ जुड़ा रिश्ता.
रिश्तों की नाज़ुक डोर तुम तोड़ना ना प्यारे,
टूटा एक बार तो कभी जुड़ता नहीं रिश्ता.
रिश्तों से बना रिश्ता, रिश्तों से लुटा रिश्ता,
ज़िदगी की दौड़ में हर मोड़ लुटा रिश्ता.
इस ठौर लुटा रिश्ता, उस ठौर लुटा रिश्ता,
रिश्तों के भँवर-जाल में हर ओर लुटा रिश्ता.
अनजान ज़िंदगी की अब पहचान है यह रिश्ता,
शबनमी आँखों का अब अरमान है यह रिश्ता.
जंगल का आदमी से रिश्ता है बड़ा गहरा,
सदियों से फिर भी क्यों अनजान है यह रिश्ता.
इनके संग-संग ही तो ज़िंदगी है चलती,
चढ़ता प्यार ही में तो परवान है यह रिश्ता.
अब तो यह बड़े ही श़ौक से सुना रहा है नग़मा,
इन्सान के लिये तो इम्तहान है यह रिश्ता.
आबरु है जहाँ की और जहाँ है इसकी आबरु,
ज़िंदगी के वास्ते तो जैसे ज़ान है यह रिश्ता.
आज बागवां में जो ख्वाब बुन रही हैं कलियाँ,
खुशबुओं के लिये तो निगहबान बना यह रिश्ता.
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ख़ुद से यहाँ पनपा लो कोई-न-कोई रिश्ता,
तन्हाई में आता बड़ा काम है यह रिश्ता.
रिश्ता पर लिखी गई एक बेहतरीन कविता।
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