जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

पिता

बारिश, 
धूप 
और हवा में
भीगता है, 
तपता है, 
सूखता है
क्योंकि 
वह पिता है।
बुढ़ाते बरगद की छाँव है,
खुशिंयों का पूरा गांव है। 
वह स्नेह है,
वात्सल्य है, 
प्यार है, 
दुलार है,
डांट है,
फटकार है,
अनुशासन है,
नियम है
और 
अथाह 
प्रेम का संयम है।
हमारी 
उलूलजुलूल हरकतों पर 
एक जोरदार 
तमाचा है;
व्यक्तित्व का 
तपा-तपाया 
साँचा है 
पिता।  
वह  
पूरा का पूरा संसार है,
पर-ब्रह्म-परमेश्वर का 
विस्तार है।   
वह 
जीवन को 
सिंचता है
वह 
हर-पल 
खुशियों का समंदर लिए 
चलता है
वह साथ होता है 
तो जैसे 
कोई मुश्किल नहीं होती
उसके 
आशीष की दुनिया 
कभी सिमटी नहीं होती
वह 
आनंद का 
अनंत आकाश  है
वह  है तो 
हर क्षण खास  है
उसके रहने पर 
कभी गम का
एहसास नहीं होता।
उसके साथ में 
कभी मन 
उदास नहीं होता।
वह होता है तो 
लगता है 
पूरी दुनिया 
मेरी है। 
वह होता है तो 
ख्वाबों के पर होते हैं;
वह होता है तो 
इरादों के पर होते हैं;
वह होता है तो 
उसके होने का 
एहसास नहीं होता। 
और, 
अगर 
वह नहीं होता
तो 
जीवन 
कोई 
खास नहीं होता
स्वयं से 
स्वयं का 
संवाद नहीं होता।
-धर्मेन्द्र कुमार पाठक







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