जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

चली गई! -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

एक मुक्त गीत
( यह गीत मुक्त - छंद में निबद्ध है)

वह एक ख्वाब बनकर चली गई !
सबके लिए लाजवाब बनकर चली गई!

दुनिया की तोहमतों पर उसने कुछ कहा नहीं;
तुम जो समझते रहे, वह उसकी जहां नहीं;
अनंत में वह मिल गई, अब वह कहां नहीं?
बस हल्के से मुस्कुरा कर चली गई !
खुदा का ख्वाब बनकर चली गई!
सबका जवाब बनकर चली गई!

सबको उसकी शख्सियत पर सवाल था;
सबको अपने आपका ही ख्याल था;
उसके रूबरू होने का मलाल था;
वह सबके लिए मिसाल बन कर चली गई!

अब किस हक से उस पर आंसू बहाते हो?
बेवजह प्यार इतना जताते हो;
उसे अपनों से भी अपना बताते हो;
सबके लिए वह ख्याल बन कर चली गई!

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