जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

ढूंढ रहा हूं -धर्मेन्द्र कुमार पाठक


आजकल 
रिश्तों के खंडहर में 
पुरखों का गांव 
ढूंढ रहा हूं.
मिट्टी में सने उनके 
धूल-धूसरित 
पांव के निशां 
ढूंढ़ रहा हूं.
उनके बोये हुए 
बरगद की
टहनी से निकले हुए 
जड़ में
अपनी उमस भरी 
जिंदगी से ऊब कर
थोड़ी -सी 
शीतल छांव 
ढूंढ  रहा हूं.
मैं अपने बचपन का
खोया हुआ गांव 
ढूंढ रहा हूं.

-धर्मेन्द्र कुमार पाठक. 

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