तेरा ही तो मैं हूँ, कहो मैं कहाँ हूँ.
यहाँ हूँ, वहाँ हूँ, बताओ मैं कहाँ हूँ.
तेरे बिन एक पल भी बीता नहीं है;
तेरा हृदय प्रेम से कभी रीता नहीं है;
तुम यदि ना चाहो तो कोई जीता नहीं है;
अब हर हाल में मैं खुश रहता जहाँ हूं.
तेरा ही तो मैं हूँ ....
जो कुछ भी दिया तूने शिकवा नहीं है;
कल क्या होगा मुझको परवाह नहीं है;
सौंप दिया हूँ सारा जीवन तुम्हें मैं;
इसलिए सदा मस्त रहता मैं जहाँ हूँ.
तेरा ही तो मैं हूँ ...
खुशी-गम क्या है मैं कभी समझता नहीं हूँ;
हानि - लाभ क्या है मैं समझता नहीं हूँ;
मान - अपमान से कभी डिगता नहीं हूँ;
हर सफर में हरदम मैं तन्हा रहा हूँ.
तेरा ही तो मैं हूँ ....
तू मेरे साथ है तो दुख क्यों मनाऊँ;
तुझे छोड़कर मैं और किसको रिझाऊँ;
तुमसे इतर और इस दुनिया में क्या है;
तुमको ही तो सब कुछ समझता रहा हूँ.
तेरा ही तो मैं हूँ ....
लेना या देना क्या प्यार में बताओ;
खोना या पाना क्या मुझको समझाओ;
हे मुरलीवाले! मुझे रास्ता दिखाओ;
वहीं आ जाओ न जिस हाल में जहाँ हूँ.
तेरा ही तो मैं हूँ ....
-धर्मेन्द्र कुमार पाठक.
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