जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

मां -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

मां!
तुम्हारी दो मृदुल आँखें,
खोल देती हैं
भावनाओं की न जाने कितनी पाँखें!
भाव-प्रवण
हम
भावनाओं के अंतरिक्ष में
उड़ते स्वछन्द,
कलरव करते!
हमारे चतुर्दिक
फैल जाती हैं
स्नेह, ममत्व, करुणा, वात्सल्य की
अनगिनत शााखें!
उभर आते हैं 
तुम्हारी स्मृतियों के
असंख्य
बिम्ब-प्रतिबिम्ब!

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