जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

औरत की मजबूरियां -धर्मेन्द्र कुमार पाठक



समाज  की यह कैसी विचित्र मजबूरियां!
औरतों  के  हाथ में  सौ-सौ  हथकड़ियां!!

आजादी  का  जश्न  लगता बहुत  फीका,
औरतों  को  घर में  ही  इतनी ड्योढ़ियां!

सिर्फ   कहने  को  भारत  है  हमारी  मां,
औरत  के  पांव  में  इतनी क्यों  बेड़ियां!

सभी जगह डर का एक अनजान साया, 
उसके  लिए  जैसे  सिमटी  हुई  दुनिया!

हर शख्स क्यों अब दीख  रहा है शैतान,
औरत  के लिए  दिल में सिर्फ हैवानियां!

वक्त  ठहरता  है  कहां  किसी  के  लिए, 
ठहर  जाती  हैं बस जिंदगी की घड़ियां!

                                -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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