जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

भावनाओं का अंतर्लाप -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

भावनाओं का अन्तर्लाप
समय के साथ
गतिशील
संवेदनाओं के
विविध प्रकोष्ठों में
एक-दूसरे को 
संयोजित करते हुए
हृदय के
आकाश में
विस्तीर्ण हो जाता है
जैसे
पाटल की पंखुड़ियाँ
अपना
सुगंध विखेर
प्रकृति के
वन-प्रान्तर में
शुष्क
धरा पर
फैल जाती हैं
निष्काम..........
निर्लिप्त...........।

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