जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

एक ग़ज़ल -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

ना जाओ कभी उस डगर साथी।
प्यार का जिधर हो ना घर साथी।।
सूने सपने आँखों में केवल,
आस सच होने की सिफ़र साथी।।
गाँव तो दीख रहा साफ़ इतना,
दूर बहुत ज़िगर से मगर साथी।।
ज़ुबां से तो वे टपकाते शहद,
मगर ज़िगर में लिए ज़हर साथी।।
दिल की बात कह दो न साफ़-साफ़,
पता हो न हो तुझे बहर साथी।।
मंज़िल मिलेगी, मिलेगी ज़रूर,
मिहनत में न रख अब कसर साथी।।
              ------धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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