जिंदगी

तेरी   यादों   से     तर -बतर  जिंदगी.  कुछ  इस  तरह  रही है गुजर  जिंदगी.  हम  मिले  यहां  तुमसे  हसीं  मोड पर, जहां  तय  कर  रही  है  सफर  जिंदगी.  एक    पहेली    है     तेरी    बातों    में,  खो   जाती  है  चलती  जिधर   जिंदगी.  हमारा  मिलना  एक  पल  के  लिए  है,  फिर   जाएगी   जाने    किधर   जिंदगी.  दिल की हसरतें कुछ भी बाकी  न रख,  जाने   कब   हो  जाए   सिफ़र  जिंदगी. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

ग़ज़ल -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

फिजा में फिर वही खामोश हलचल है।
सैय्याद की बाहों में कैद अब बुलबुल है।।
शहर में छाई है   अब मातमी खामोशी।
शैतानों के घर खूब यहां चहल - पहल है।।
दरख़्तों पर  डाला है  बाजों ने  बसेरा।
सहमा - सहमा आज   सारा जंगल है।।
हर दिल को इतना गहरा पहुंचा है सदमा।
अब  चारों तरफ से    घेरे हुए दलदल है।।
कितना खौफनाक हो गया इस जहां का मंज़र।
कतरा - कतरा  कटा हुआ  अब हरेक गुल है।।
तूफान में  घिरी हुई है  जैसे अब कश्ती।
दोस्तों, मझधार में खोई हुई मंजिल है।।

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